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दिव्यांग व्यक्तियों के साथ न्यायिक सेवा की परीक्षाओं में भेदभाव नहीं होना चाहिए: एससी

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा कि किसी भी व्यक्ति को केवल उनकी शारीरिक अक्षमता के कारण न्यायिक सेवा भर्ती से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के साथ न्यायिक सेवा की परीक्षाओं में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए और राज्य को उन्हें उचित वातावरण प्रदान करने के लिए सकारात्मक कदम उठाने चाहिए।
‘दिव्यांगता के कारण ज्यूडिशियल सर्विस से वंचित नहीं कर सकते’
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि कोई भी उम्मीदवार केवल उसकी दिव्यांगता के कारण ज्यूडिशियल सर्विस से वंचित नहीं किया जा सकता। सभी पात्र दिव्यांग उम्मीदवारों को उचित अवसर और सुविधाएं दी जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियमों के उस प्रावधान को निरस्त कर दिया, जो दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले (Low Vision) उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा से वंचित करता था। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायिक सेवाओं की चयन प्रक्रिया में कोई भी अप्रत्यक्ष भेदभाव, जैसे उच्च कटऑफ या अन्य बाधाएं, समाप्त की जानी चाहिए ताकि वास्तविक समानता सुनिश्चित की जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने ‘एमपी सेवा नियमों के उस प्रावधान को भी रद्द कर दिया, जो न्यूनतम 70% अंक पहले प्रयास में ही लाने या 3 साल की वकालत का अनुभव अनिवार्य करता था। अब यह नियम केवल न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता पर लागू रहेगा, लेकिन इसे पहले प्रयास में प्राप्त करने की बाध्यता नहीं होगी।
दृष्टिबाधित उम्मीदवार की मां ने सीजेआई को भेजी थी चिट्ठी
इस मामले की सुनवाई पूर्व चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ को एक दृष्टिबाधित उम्मीदवार की मां द्वारा भेजे गए पत्र से शुरू हुई थी। कोर्ट ने इस लेटर को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका में बदल दिया और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, राज्य सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। मार्च 2024 में शीर्ष अदालत ने यह देखा था कि मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा 2022 में दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के लिए आरक्षण उपलब्ध नहीं था, जो कि दिव्यांग अधिकार अधिनियम, 2016 के सिद्धांतों का उल्लंघन था।
सीनियर वकील गौरव अग्रवाल मामले में कोर्ट सलाहकार बनाए गए थे। उन्होंने तर्क दिया था कि दिव्यांग अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत सरकारी सेवाओं में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए आरक्षण का प्रावधान लागू होता है, और इसमें न्यायिक अधिकारियों को भी शामिल किया जाना चाहिए। अदालत ने पूछा था कि क्या दृष्टिबाधित न्यायाधीशों के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण आवश्यक होगा। इस पर कोर्ट सलाहकार ने बताया कि न्यायिक अधिकारियों और उनके सहकर्मियों के लिए विशेष प्रशिक्षण और जागरूकता की आवश्यकता होती है एक्सपर्ट कमिटी ने निष्कर्ष निकाला कि दृष्टिबाधित व्यक्ति, जिनमें दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले शामिल हैं और वह ज्यूडिशियल वर्क कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब दिव्यांग उम्मीदवारों को न्यायिक सेवाओं में भाग लेने का पूरा अवसर मिलेगा। न्यायिक सेवा में समावेशिता और समानता को बढ़ावा मिलेगा।

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